यहोवा दया और करूणा चाहता है
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फारस में दारा के राज्याकाल के चौथे वर्ष, जकर्याह को यहोवा का एक संदेश मिला । यह नौवे महीने का चौथा दिन था। (अर्थात् किस्लव।) बेतेल के लोगों ने शेरसेर, रेगेम्मेलेक और अपने साथियों को यहोवा से एक प्रश्न पूछने को भेजा। वे सर्वशक्तिमान यहोवा के मंदिर में नबियों और याजकों के पास गए। उन लोगों ने ने उनसे यह प्रश्न पूछा: “हम ने कई वर्ष तक मंदिर के ध्वस्त होने का शोक मनाया है। हर वर्ष के पाँचवें महीने में, रोने और उपवास रखने का हम लोगों का विशेष समय रहा हैं। क्या हमें इसे करते रहना चाहिये?”
मैंने सर्वशक्तिमान यहोवा का यह सन्देश पाया है: “याजकों और इस देश के अन्य लोगों से यह कहो: जो उपवास और शोक पिछले सत्तर वर्ष से वर्ष के पाँचवें और सातवें महीने में तुम करते आ रहे हो,क्या वह उपवास, सच ही, मेरे लिये थानहीं! और जब तुमने खाया और दाखमधु पिया तब क्या वह मेरे लिये था। नहीं यह तुम्हारी अपनी भलाई के लिये था। परमेश्वर ने प्रथम नबियों का उपयोग बहुत पहले यही बात तब कही थी, जब यरूशलेम मनुष्यों से भरा—पूरा सम्पत्तिशाली था। परमेश्वर ने यह बातें तब कहीं थीं, जब यरूशलेम के चारों ओर के नगरों में तथा नेगव एवं पश्चिंमी पहाङियों की तराईयों में लोग शान्तिपूर्वक रहते थे।”
जकर्याह को यहोवा का यह सन्दोशहै:
“सर्वशक्तिमान यहोवा ने ये बातें कहीं,
‘तुम्हें जो सत्य और उचित हो, करना चाहिये।
तम्हें हर एक को एक दुसरे के प्रति दयालु
और करूणापूर्ण होना चाहिये।
10 विधवाओ, अनाथों, अजनबियों या
दीन लोगों को चोट न पहुँचाओ।
एक दुसरे का बुरा करने का विचार भी मन में न आने दो!’”
11 किन्तु उनलोगों ने अन सुनी की।
उन्होंने उसे करने से इन्कार किया जिसे वे चाहते थे।
उन्होंने अपने कान बन्द कर लिये,
जिससे वे, परमेश्वर जो कहे, उसे न सुन सकें।
12 वे बङे हठी थे।
उन्होंने परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करना
अस्वीकार कर दिया।
अपनी आत्मशक्ति से सर्वशक्तिमान यहावा ने
नबियों द्धारा अपने लोगों को सन्देश भेजे।
किन्तु लोगों ने उसे नहीं सुना,
अत: सर्वशक्तिमान यहोवा बहुत क्रारोधित हुआ।
13 अत: सर्वशक्तिमान यहावा ने कहा,
“मैं ने उन्हें पुकारा
और उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
इसलिये अब यदि वे मुझे पुकारेंगे,
तो मैं उत्तर नहीं दूँगा।
14 मैं अन्य राष्ट्रों को तुफान की तरह उनके विरूद्ध लाऊँगा।
वे उन्हें नहीं जानते,
किन्तु जब वे देश से गुजरेंगे,
तो उजङ जाएगा।”