विलापगीत 
लेखक 
पुस्तक में लेखक का नाम नहीं है। यहूदी एवं मसीही परम्पराएँ दोनों यिर्मयाह को इसका लेखक मानती हैं। इस पुस्तक के लेखक ने यरूशलेम के विनाश के परिणाम देखे थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने शत्रु की सेना का आक्रमण स्वयं देखा था (विला. 1:13-15)। यिर्मयाह दोनों ही घटनाओं के समय वहाँ उपस्थित था। यहूदिया ने परमेश्वर से विद्रोह करके वाचा तोड़ी थी। परमेश्वर ने उन्हें अनुशासित करने के लिए बाबेल को अपना साधन बनाया था। इस पुस्तक में घोर कष्टों के वर्णन के उपरान्त भी में आशा की प्रतिज्ञा है। यिर्मयाह परमेश्वर की भलाई को स्मरण करता है। वह परमेश्वर की विश्वासयोग्यता के सत्य द्वारा उन्हें ढाढ़स बंधाता है। वह पाठकों को परमेश्वर की करुणा और अचूक प्रेम के बारे में बताता है। 
लेखन तिथि एवं स्थान 
लगभग 586 - 584 ई. पू. 
यिर्मयाह द्वारा यहाँ बाबेल की सेना द्वारा यरूशलेम के घेराव एवं विनाश का प्रत्यक्ष वर्णन किया गया है। 
प्रापक 
निर्वासन में शेष रहे यहूदी जो स्वदेश लौट आए तथा सब बाइबल पाठक। 
उद्देश्य 
पाप चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, उसका परिणाम भोगना होता है। परमेश्वर अपने अनुयायियों को लौटा लाने के लिए मनुष्य तथा परिस्थिति को साधन बनाता है। आशा केवल परमेश्वर से होती है। जिस प्रकार परमेश्वर ने निर्वासन में कुछ यहूदियों को बचाकर रखा था उसी प्रकार उसने अपने पुत्र, यीशु को उद्धारक बनाकर दे दिया। पाप अनन्त मृत्यु लाता है परन्तु फिर भी परमेश्वर अपनी उद्धार की योजना द्वारा शाश्वत जीवन प्रदान करता है। विलापगीत की पुस्तक स्पष्ट दर्शाती है कि पाप और विद्रोह परमेश्वर के क्रोध को लाते हैं (1:8-9; 4:13; 5:16)। 
मूल विषय 
विलाप 
रूपरेखा 
1. यिर्मयाह यरूशलेम के लिए विलाप करता है — 1:1-22 
2. पाप परमेश्वर का क्रोध लाता है — 2:1-22 
3. परमेश्वर अपने लोगों को कभी नहीं छोड़ता है — 3:1-66 
4. यरूशलेम की महिमा का अन्त — 4:1-22 
5. यिर्मयाह अपने लोगों के लिए मध्यस्थता करता है — 5:1-22  
 1
उपद्रव में यरूशलेम 
 1 जो नगरी लोगों से भरपूर थी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है! 
वह क्यों एक विधवा के समान बन गई? 
वह जो जातियों की दृष्टि में महान और प्रान्तों में रानी थी, 
अब क्यों कर देनेवाली हो गई है। 
 2 रात को वह फूट फूटकर रोती है, उसके आँसू गालों पर ढलकते हैं; 
उसके सब यारों में से अब कोई उसे शान्ति नहीं देता; 
उसके सब मित्रों ने उससे विश्वासघात किया, 
और उसके शत्रु बन गए हैं। 
 3 यहूदा दुःख और कठिन दासत्व के कारण परदेश चली गई; 
परन्तु अन्यजातियों में रहती हुई वह चैन नहीं पाती; 
उसके सब खदेड़नेवालों ने उसकी सकेती में उसे पकड़ लिया है। 
 4 सिय्योन के मार्ग विलाप कर रहे हैं, 
क्योंकि नियत पर्वों में कोई नहीं आता है; 
उसके सब फाटक सुनसान पड़े हैं, उसके याजक कराहते हैं; 
उसकी कुमारियाँ शोकित हैं, 
और वह आप कठिन दुःख भोग रही है। 
 5 उसके द्रोही प्रधान हो गए, उसके शत्रु उन्नति कर रहे हैं, 
क्योंकि यहोवा ने उसके बहुत से अपराधों के कारण उसे दुःख दिया है; 
उसके बाल-बच्चों को शत्रु हाँक-हाँककर बँधुआई में ले गए। 
 6 सिय्योन की पुत्री का सारा प्रताप जाता रहा है। 
उसके हाकिम ऐसे हिरनों के समान हो गए हैं जिन्हें कोई चरागाह नहीं मिलती; 
वे खदेड़नेवालों के सामने से बलहीन होकर भागते हैं। 
 7 यरूशलेम ने, इन दुःख भरे और संकट के दिनों में, 
जब उसके लोग द्रोहियों के हाथ में पड़े और उसका कोई सहायक न रहा, 
अपनी सब मनभावनी वस्तुओं को जो प्राचीनकाल से उसकी थीं, स्मरण किया है। 
उसके द्रोहियों ने उसको उजड़ा देखकर उपहास में उड़ाया है। 
 8  यरूशलेम ने बड़ा पाप किया* 1:8 यरूशलेम ने बड़ा पाप किया: इसका शाब्दिक अनुवाद है, यरूशलेम ने एक पाप का पाप किया है। इसका भावार्थ है कि वे दुष्टता में लिप्त रहते हैं। , इसलिए वह अशुद्ध स्त्री सी हो गई है; 
जितने उसका आदर करते थे वे उसका निरादर करते हैं, 
क्योंकि उन्होंने उसकी नंगाई देखी है; 
हाँ, वह कराहती हुई मुँह फेर लेती है। 
 9 उसकी अशुद्धता उसके वस्त्र पर है; 
उसने अपने अन्त का स्मरण न रखा; 
इसलिए वह भयंकर रीति से गिराई गई, 
और कोई उसे शान्ति नहीं देता है। 
हे यहोवा, मेरे दुःख पर दृष्टि कर, 
क्योंकि शत्रु मेरे विरुद्ध सफल हुआ है! 
 10 द्रोहियों ने उसकी सब मनभावनी वस्तुओं पर हाथ बढ़ाया है; 
हाँ, अन्यजातियों को, जिनके विषय में तूने आज्ञा दी थी कि वे तेरी सभा में भागी न होने पाएँगी, 
उनको उसने तेरे पवित्रस्थान में घुसा हुआ देखा है। 
 11 उसके सब निवासी कराहते हुए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे हैं; 
उन्होंने अपना प्राण बचाने के लिये अपनी मनभावनी वस्तुएँ बेचकर भोजन मोल लिया है। 
हे यहोवा, दृष्टि कर, और ध्यान से देख, 
क्योंकि मैं तुच्छ हो गई हूँ। 
 12 हे सब बटोहियों, क्या तुम्हें इस बात की कुछ भी चिन्ता नहीं? 
दृष्टि करके देखो, क्या मेरे दुःख से बढ़कर कोई और पीड़ा है जो यहोवा ने अपने क्रोध के दिन मुझ पर डाल दी है? 
 13 उसने ऊपर से मेरी हड्डियों में आग लगाई है, 
और वे उससे भस्म हो गईं; 
उसने मेरे पैरों के लिये जाल लगाया, और मुझ को उलटा फेर दिया है; 
उसने ऐसा किया कि मैं त्यागी हुई सी और रोग से लगातार निर्बल रहती हूँ† 1:13 उसने ऐसा किया कि मैं त्यागी हुई सी .... हूँ: यहूदिया एक शिकार के पशु के समान बचने की खोज में है परन्तु उसके वचन के हर एक मार्ग में जाल बिछा हुआ है और वह भयातुर वहाँ से लौटता है, चारों ओर निराशा ही निराशा है। । 
 14 उसने जूए की रस्सियों की समान मेरे अपराधों को अपने हाथ से कसा है; 
उसने उन्हें बटकर मेरी गर्दन पर चढ़ाया, और मेरा बल घटा दिया है; 
जिनका मैं सामना भी नहीं कर सकती, उन्हीं के वश में यहोवा ने मुझे कर दिया है। 
 15 यहोवा ने मेरे सब पराक्रमी पुरुषों को तुच्छ जाना; 
उसने नियत पर्व का प्रचार करके लोगों को मेरे विरुद्ध बुलाया कि मेरे जवानों को पीस डाले; 
यहूदा की कुमारी कन्या को यहोवा ने मानो कुण्ड में पेरा है। (प्रका. 14:20, प्रका. 19:15)  
 16 इन बातों के कारण मैं रोती हूँ; 
मेरी आँखों से आँसू की धारा बहती रहती है; 
क्योंकि जिस शान्तिदाता के कारण मेरा जी हरा भरा हो जाता था, वह मुझसे दूर हो गया; 
मेरे बच्चे अकेले हो गए, क्योंकि शत्रु प्रबल हुआ है। 
 17  सिय्योन हाथ फैलाए हुए है‡ 1:17 सिय्योन हाथ फैलाए हुए है: वह प्रार्थना करता है परन्तु सिय्योन की विनती व्यर्थ है। उसे शान्ति देनेवाला कोई नहीं है, परमेश्वर भी नहीं क्योंकि उसे दण्ड देनेवाला वही है; न मनुष्य है क्योंकि उसके सब पड़ोसी देश उसके शत्रु हो गये हैं।, उसे कोई शान्ति नहीं देता; 
यहोवा ने याकूब के विषय में यह आज्ञा दी है कि उसके चारों ओर के निवासी उसके द्रोही हो जाएँ; 
यरूशलेम उनके बीच अशुद्ध स्त्री के समान हो गई है। 
 18 यहोवा सच्चाई पर है, क्योंकि मैंने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया है; 
हे सब लोगों, सुनो, और मेरी पीड़ा को देखो! मेरे कुमार और कुमारियाँ बँधुआई में चली गई हैं। 
 19 मैंने अपने मित्रों को पुकारा परन्तु उन्होंने भी मुझे धोखा दिया; 
जब मेरे याजक और पुरनिये इसलिए भोजनवस्तु ढूँढ़ रहे थे कि खाने से उनका जी हरा हो जाए, 
तब नगर ही में उनके प्राण छूट गए। 
 20 हे यहोवा, दृष्टि कर, क्योंकि मैं संकट में हूँ, 
मेरी अंतड़ियाँ ऐंठी जाती हैं, मेरा हृदय उलट गया है, क्योंकि मैंने बहुत बलवा किया है। 
बाहर तो मैं तलवार से निर्वंश होती हूँ; 
और घर में मृत्यु विराज रही है। 
 21 उन्होंने सुना है कि मैं कराहती हूँ, 
परन्तु कोई मुझे शान्ति नहीं देता। 
मेरे सब शत्रुओं ने मेरी विपत्ति का समाचार सुना है; 
वे इससे हर्षित हो गए कि तू ही ने यह किया है। 
परन्तु जिस दिन की चर्चा तूने प्रचार करके सुनाई है उसको तू दिखा, 
तब वे भी मेरे समान हो जाएँगे। 
 22 उनकी सारी दुष्टता की ओर दृष्टि कर; 
और जैसा मेरे सारे अपराधों के कारण तूने मुझे दण्ड दिया, वैसा ही उनको भी दण्ड दे; 
क्योंकि मैं बहुत ही कराहती हूँ, 
और मेरा हृदय रोग से निर्बल हो गया है। 
*1:8 1:8 यरूशलेम ने बड़ा पाप किया: इसका शाब्दिक अनुवाद है, यरूशलेम ने एक पाप का पाप किया है। इसका भावार्थ है कि वे दुष्टता में लिप्त रहते हैं।
†1:13 1:13 उसने ऐसा किया कि मैं त्यागी हुई सी .... हूँ: यहूदिया एक शिकार के पशु के समान बचने की खोज में है परन्तु उसके वचन के हर एक मार्ग में जाल बिछा हुआ है और वह भयातुर वहाँ से लौटता है, चारों ओर निराशा ही निराशा है।
‡1:17 1:17 सिय्योन हाथ फैलाए हुए है: वह प्रार्थना करता है परन्तु सिय्योन की विनती व्यर्थ है। उसे शान्ति देनेवाला कोई नहीं है, परमेश्वर भी नहीं क्योंकि उसे दण्ड देनेवाला वही है; न मनुष्य है क्योंकि उसके सब पड़ोसी देश उसके शत्रु हो गये हैं।