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संकट के समय प्रार्थना 
 1 हे परमेश्वर, मेरा न्याय चुका* 43:1 मेरा न्याय चुका: दण्ड देने की बात नहीं है, मेरा मुकद्दमा लड़।  
और विधर्मी जाति से मेरा मुकद्दमा लड़; 
मुझ को छली और कुटिल पुरुष से बचा। 
 2 क्योंकि तू मेरा सामर्थी परमेश्वर है, 
तूने क्यों मुझे त्याग दिया है? 
मैं शत्रु के अत्याचार के मारे शोक का 
पहरावा पहने हुए क्यों फिरता रहूँ? 
 3 अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; 
वे मेरी अगुआई करें, 
वे ही मुझ को तेरे पवित्र पर्वत† 43:3 पवित्र पर्वत: सिय्योन पर्वत, जहाँ परमेश्वर की आराधना की जाती थी। 
पर और तेरे निवास-स्थान में पहुँचाए! 
 4 तब मैं परमेश्वर की वेदी के पास जाऊँगा, 
उस परमेश्वर के पास जो मेरे अति 
आनन्द का कुण्ड है; और हे परमेश्वर, 
हे मेरे परमेश्वर, मैं वीणा बजा-बजाकर तेरा धन्यवाद करूँगा। 
 5 हे मेरे प्राण तू क्यों गिरा जाता है? 
तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? 
परमेश्वर पर आशा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक 
और मेरा परमेश्वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।