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यहोवा का दिन जो आने को है 
 1 सिय्योन पर नरसिंगा फूँको। 
मेरे पवित्र पर्वत पर चेतावनी सुनाओ। 
उन सभी लोगों को जो इस धरती पर रहते हैं, तुम भय से कँपा दो। 
यहोवा का विशेष दिन आ रहा है। 
यहोवा का विशेष दिन पास ही आ पहुँचा है। 
 2 वह दिन अंधकार भरा होगा, 
वह दिन उदासी का होगा, वह दिन काला होगा और वह दिन दुर्दिन होगा। 
भोर की पहली किरण के साथ तुम्हें पहाड़ पर सेना फैलती हुई दिखाई देगी। 
वह सेना विशाल और शक्तिशीली भी होगी। 
ऐसा पहले तो कभी भी घटा नहीं था 
और आगे भी कभी ऐसा नहीं घटेगा, न ही भूत काल में, न ही भविष्य में। 
 3 वह सेना इस धरती को धधकती आग जैसे तहस—नहस कर देगी। 
सेना के आगे की भूमी वैसी ही हो जायेगी जैसे एदेन का बगीचा 
और सेना के पीछे की धरती वैसी हो जायेगी जैसे उजड़ा हुआ रेगिस्तान हो। 
उनसे कुछ भी नही बचेगा। 
 4 वे घोड़े की तरह दिखते हैं और ऐसे दौड़ते हैं 
जैसे युद्ध के घोड़े हों। 
 5 उन पर कान दो। 
वह नाद ऐसा है 
जैसे पहाड़ पर चढ़ते रथों का घर्र—घर्र नाद हो। 
वह नाद ऐसा है 
जैसे भूसे को चटपटाती हुई 
लपटें जला रही हों । 
वे लोग शक्तिशाली हैं। 
वे युद्ध को तत्पर हैं। 
 6 इस सेना के आगे लोग भय से काँपते हैं। 
उनके मुख डर से पीले पड़ जाते हैं। 
 7 वे सैनिक बहुत तेज दौड़ते हैं। 
वे सैनिक दीवारों पर चढ़ते हैं। 
प्रत्येक सैनिक सीधा ही आगे बढ़ जाता है। 
वे अपने मार्ग से जरा भी नहीं हटते हैं। 
 8 वे एक दूसरे को आपस में नहीं थकेलते हैं। 
हर एक सैनिक अपनी राह पर चलता है। 
यदि कोई सैनिक आघात पा करके गिर जाता है 
तो भी वे दूसरे सैनिक आगे ही बढ़ते रहते हैं। 
 9 वे नगर पर चढ़ जाते हैं 
और बहुद जल्दी ही परकोटा फलांग जाते हैं। 
वे भवनों पर चढ़ जाते 
और खिड़कियों से होकर भीतर घुस जाते हैं जैसे कोई चोर घुस जाये। 
 10 धरती और आकाश तक उनके सामने काँपते हैं। 
सूरज और चाँद भी काले पड़ जाते हैं और तोर चमकना छोड़ देते हैं। 
 11 यहोवा जोर से अपनी सेना को पुकारता है। 
उसकी छावनी विशाल है। 
वह सेना उसके आदेशों को मानती है। 
वह सेना अति बलशाली है। 
यहोवा का विशेष दिन महान और भयानक है। 
काई भी व्यक्ति उसे रोक नही सकता। 
यहोवा लोगों से बदलने को कहते हैं 
 12 यहोवा का यह संदेश है: 
“अपने पूर्ण मन के साथ अब मेरे पास लौट आओ। 
तुमने बुरे कर्म किये हैं। 
विलाप करो और निराहार रहो! 
 13 अरे वस्त्र नहीं, तुम अपने ही मन को फाड़ो। 
तुम लौट कर अपने परमेश्वर यहोवा के पास जाओ। 
वह दयालु और करूणापूर्ण है। 
उसको शीघ्र क्रोध नहीं आता है। 
उसका प्रेम महान है। 
सम्भव है जो क्रोध दण्ड उसने तुम्हारे लिये सोचा है, 
उसके लिये अपना मन बदल ले। 
 14 कौन जानता है, सम्भव है यहोवा अपना मन बदल ले 
और यह भी सम्भव है कि वह तुम्हारे लिये कोई वरदान छोड़ जाये। 
फिर तुम अपने परमेश्वर यहोवा को अन्नबलि 
और पेय भेंट अर्पित कर पाओगे। 
यहोवा से प्रार्थना करो 
 15 सिय्योन पर नरसिंगा फूँको। 
उस विशेष सभा के लिये बुलावा दो। 
उस उपवास के विशेष समय का बुलावा दो। 
 16 तुम, लोगों को जुटाओ। 
उस विशेष सभा के लिये उन्हें बुलाओ। 
तुम बूढ़े पुरूषों को एकत्र करो और बच्चे भी साथ एकत्र करो। 
वे छोटे शिशु भी जो अभी भी स्तन पीते हों, लाओ। 
नयी दुल्हन को और उसके पति को सीधे उनके शयन—कक्षों से बुलाओ। 
 17 हे याजकों और यहोवा के दासों, 
आँगन और वेदी के बीच में बुहार करो। 
सभी लोगों ये बातें तुम्हें कहनी चाहिये: “यहोवा ने तुम्हारे लोगों पर करूणा की। 
तुम अपने लोगों को लज्जित मत होने दो। 
तुम अपने लोगों को दूसरों के बीच में 
हँसी का पात्र मत बनने दो। 
तुम दूसरे देशों को हँसते हुए कहने का अवसर मत दो कि, ‘उनका परमेश्वर कहाँ है?’ ” 
यहोवा तुम्हें तुम्हारी धरती वापस दिलवायेगा 
 18 फिर यहोवा अपनी धरती के बारे में बहुत अधिक चिन्तित हुआ। 
उसे अपने लोगों पर दया आयी। 
 19 यहोवा ने अपने लोगों से कहा। 
वह बोला, “मैं तुम्हारे लिये अन्र, दाखमधु और तेल भिजवाऊँगा। 
ये तुमको भरपूर मिलेंगे। 
मैं तुमको अब और अधिक जातियों के बीच में लज्जित नहीं करूँगा। 
 20 नहीं, मैं तुम्हारी धरती को त्यागने के लिये उन लोगों (उत्तर अथवा बाबुल) पर दबाव दूँगा। 
मैं उनको सूखी और उजड़ी हुई धरती पर भेजूँगा। 
उनमें से कुछ पूर्व के सागर में जायेंगे 
और उनमें से कुछ पश्चिमी समुद्र में जायेंगे। 
उन शत्रुओं ने ऐसे भयानक कर्म किये हैं। 
वे लोग वैसे हो जायेंगे जैसे सड़ती हुई मृत वस्तुएँ होती हैं। 
वहाँ ऐसी भयानक दुर्गन्ध होगी।” 
धरती को फिर नया बनाया जायेगा 
 21 हे धरती, तू भयभत मत हो। 
प्रसन्न हो जा और आनन्द से भर जा 
क्योंकी यहोवा बड़े काम करने को है। 
 22 ओ मैदानी पशुओं, तुम भय त्यागो। 
जंगल की चारागाहें घास उगाया करेंगी। 
वृक्ष फल देने लगेंगे। 
अंजीर के पेड़ और अंगूर की बेलें भरपूर फल देंगे। 
 23 सो, हे सिय्योन के लोगों, प्रसन्न रहो। 
अपने परमेश्वर यहोवा में आनन्द से भर जाओ। 
क्योंकि वह तुम्हारे साथ भला करेगा और तुम्हें वर्षा देगा। 
वह तुम्हें अगली वर्षा देगा और वह तूझे पिछली वर्षा भी देगा जैसे पहले दिया करता था। 
 24 तुम्हारे ये खलिहान गेहूँ से भर जायेंगे और तुम्हारे कुप्पे दाखमधु 
और जैतुन के तेल से उफनने लगेंगे। 
 25 मुझ यहोवा ने अपनी सशक्त सेना तुम्हारे विरोध में भेजी थी। 
वे भिन्नाती हुई टिड्डियाँ, फुदकती हुई टिड्डियाँ, विनाशकारी टिड्डियाँ 
और कुतरती टिड्डियाँ तुम्हारी वस्तुएँ खा गयी। 
किन्तु मैं, यहोवा उन विपत्तियों के वर्षों के बदले में 
फिर से तुम्हें और वर्षा दूँगा। 
 26 फिर तुम्हारे पास खाने को भरपूर होगा। 
तुम संतुष्ट होगे। 
अपने परमेश्वर यहोवा के नाम का तुम गुणगान करोगे। 
उसने तुम्हारे लिये अद्भुत बातें की हैं। 
अब मेरे लोग फिर कभी लज्जित नहीं होंगे। 
 27 तुमको पता चल जायेगा कि मैं इस्राएली लोगों के साथ हूँ। 
तुमको पता चल जायेगा कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ 
और कोई दूसरा परमेश्वर नहीं है। 
मेरे लोग फिर कभी लज्जित न होंगे। 
सभी लोगों पर अपनी आत्मा उंडेलने की यहोवा की प्रतिज्ञा 
 28 इसके बाद, 
मैं तुम सब पर अपनी आत्मा उंडेलूँगा। 
तुम्हारे पुत्र—पुत्रियाँ भविष्यवाणी करेंगे। 
तुम्हारे बूढ़े दिव्य स्वप्नों को देखेंगे। 
तुम्हारे युवक दर्शन करेंगे। 
 29 उस समय मैं अपनी आत्मा 
दास—दासियों पर उंडेलूँगा। 
 30 धरती पर और आकाश में मैं अद्भत चिन्ह प्रकट करूँगा। 
वहाँ खून, आग और गहरा धुआँ होगा। 
 31 सूरज अंधकार में बदल जायेगा। 
चाँद भी खून के रंग में बदलेगा 
और फिर यहोवा का महान और भयानक दिन आयेगा! 
 32 तब कोई भी व्यक्ति जो यहोवा का नाम लेगा, छुटकारा पायेगा। 
सिय्योन के पहाड़ पर और यरूशलेम में वे लोग बसेंगे जो बचाये गये हैं। 
यह ठीक वैसा ही होगा जैसा यहोवा ने बताया है। 
उन बचाये गये लोगों में बस वे ही लोग होंगे 
जिन्हें यहोवा ने बुलाया था।