स्तोत्र 27
दावीद की रचना. 
 1 याहवेह मेरी ज्योति और उद्धार हैं; 
मुझे किसका भय हो सकता है? 
याहवेह मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ हैं, 
तो मुझे किसका भय? 
 2 जब दुर्जन मुझे निगलने के लिए 
मुझ पर आक्रमण करते हैं, 
जब मेरे विरोधी तथा मेरे शत्रु मेरे विरुद्ध उठ खड़े होते हैं, 
वे ठोकर खाकर गिर जाते हैं. 
 3 यदि एक सेना भी मुझे घेर ले, 
तब भी मेरा हृदय भयभीत न होगा; 
यदि मेरे विरुद्ध युद्ध भी छिड़ जाए, 
तब भी मैं पूर्णतः निश्चिंत बना रहूंगा. 
 4 याहवेह से मैंने एक ही प्रार्थना की है, 
यही मेरी आकांक्षा है: 
मैं आजीवन याहवेह के आवास में निवास कर सकूं, 
कि याहवेह के सौंदर्य को देखता रहूं 
और उनके मंदिर में मनन करता रहूं. 
 5 क्योंकि वही हैं जो संकट काल में 
मुझे आश्रय देंगे; 
वही मुझे अपने गुप्त-मंडप के आश्रय में छिपा लेंगे 
और एक उच्च चट्टान में मुझे सुरक्षा प्रदान करेंगे. 
 6 तब जिन शत्रुओं ने मुझे घेरा हुआ है, 
उनके सामने मेरा मस्तक ऊंचा हो जाएगा. 
तब उच्च हर्षोल्लास के साथ मैं याहवेह के गुप्त-मंडप में बलि अर्पित करूंगा; 
मैं गाऊंगा, हां, मैं याहवेह की वंदना करूंगा. 
 7 याहवेह, मेरी वाणी सुनिए; 
मुझ पर कृपा कर मुझे उत्तर दीजिए. 
 8 आपने कहा, “मेरे खोजी बनो!” मेरा हृदय आपसे यह कहता है, 
याहवेह, मैं आपका ही खोजी बनूंगा. 
 9 मुझसे अपना मुखमंडल न छिपाइए, 
क्रोध में अपने सेवक को दूर न कीजिए; 
आप ही मेरे सहायक रहे हैं. 
मेरे परमेश्वर, मेरे उद्धारक 
मुझे अस्वीकार न कीजिए और न मेरा परित्याग कीजिए. 
 10 मेरे माता-पिता भले ही मेरा परित्याग कर दें, 
किंतु याहवेह मुझे स्वीकार कर लेंगे. 
 11 याहवेह, मुझे अपने आचरण की शिक्षा दें; 
मेरे शत्रुओं के मध्य सुरक्षित 
मार्ग पर मेरी अगुवाई करें. 
 12 मुझे मेरे शत्रुओं की इच्छापूर्ति का साधन होने के लिए न छोड़ दें, 
मेरे विरुद्ध झूठे साक्ष्य उठ खड़े हुए हैं, 
वे सभी हिंसा पर उतारू हैं. 
 13 मुझे यह पूर्ण निश्चय है: 
कि मैं इसी जीवन में, 
याहवेह की कृपादृष्टि का अनुभव करूंगा. 
 14 याहवेह में अपनी आशा स्थिर रखो; 
दृढ़ रहकर साहसी बनो, 
हां, याहवेह पर भरोसा रखो.