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स्त्री का वचन 
 1 हर रात अपनी सेज पर 
मैं अपने मन में उसे ढूँढती हूँ। 
जो पुरुष मेरा प्रिय है, मैंने उसे ढूँढा है, 
किन्तु मैंने उसे नहीं पाया! 
 2 अब मैं उठूँगी! 
मैं नगर के चारों गलियों, 
बाज़ारों में जाऊँगी। 
मैं उसे ढूढूँगी जिसको मैं प्रेम करती हूँ। 
मैंने वह पुरुष ढूँढा 
पर वह मुझे नहीं मिला! 
 3 मुझे नगर के पहरेदार मिले। 
मैंने उनसे पूछा, “क्या तूने उस पुरुष को देखा जिसे मैं प्यार करती हूँ?” 
 4 पहरेदारों से मैं अभी थोड़ी ही दूर गई 
कि मुझको मेरा प्रियतम मिल गया! 
मैंने उसे पकड़ लिया और तब तक जाने नहीं दिया 
जब तक मैं उसे अपनी माता के घर में न ले आई 
अर्थात् उस स्त्री के कक्ष में जिसने मुझे गर्भ में धरा था। 
स्त्री का वचन स्त्रियों के प्रति 
 5 यरूशलेम की कुमारियों, कुरंगों 
और जंगली हिरणियों को साक्षी मान कर मुझको वचन दो, 
प्रेम को मत जगाओ, 
प्रेम को मत उकसाओ, जब तक मैं तैयार न हो जाऊँ। 
वह और उसकी दुल्हिन 
 6 यह कुमारी कौन है 
जो मरुभूमि से लोगों की इस बड़ी भीड़ के साथ आ रही है 
धूल उनके पीछे से यूँ उठ रही है मानों 
कोई धुएँ का बादल हो। 
जो धूआँ जलते हुए गन्ध रस, धूप और अन्य गंध मसाले से निकल रही हो। 
 7 सुलैमान की पालकी को देखो! 
उसकी यात्रा की पालकी को साठ सैनिक घेरे हुए हैं। 
इस्राएल के शक्तिशाली सैनिक! 
 8 वे सभी सैनिक तलवारों से सुसज्जित हैं 
जो युद्ध में निपुण हैं; हर व्यक्ति की बगल में तलवार लटकती है, 
जो रात के भयानक खतरों के लिये तत्पर हैं! 
 9 राजा सुलैमान ने यात्रा हेतु अपने लिये एक पालकी बनवाई है, 
जिसे लबानोन की लकड़ी से बनाया गया है। 
 10 उसने यात्रा की पालकी के बल्लों को चाँदी से बनाया 
और उसकी टेक सोने से बनायी गई। 
पालकी की गद्दी को उसने बैंगनी वस्त्र से ढँका 
और यह यरूशलेम की पुत्रियों के द्वारा प्रेम से बुना गया था। 
 11 सिय्योन के पुत्रियों, बाहर आ कर 
राजा सुलैमान को उसके मुकुट के साथ देखो 
जो उसको उसकी माता ने 
उस दिन पहनाया था जब वह ब्याहा गया था, 
उस दिन वह बहुत प्रसन्न था!