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शूही बिल्दद का वचन 
 १ तब शूही बिल्दद ने कहा, 
 २ “प्रभुता करना और डराना यह उसी का काम है*; 
वह अपने ऊँचे-ऊँचे स्थानों में शान्ति रखता है। 
 ३ क्या उसकी सेनाओं की गिनती हो सकती? 
और कौन है जिस पर उसका प्रकाश नहीं पड़ता? 
 ४ फिर मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी कैसे ठहर सकता है? 
और जो स्त्री से उत्पन्न हुआ है वह कैसे निर्मल हो सकता है? 
 ५ देख, उसकी दृष्टि में चन्द्रमा भी अंधेरा ठहरता, 
और तारे भी निर्मल नहीं ठहरते। 
 ६ फिर मनुष्य की क्या गिनती जो कीड़ा है, 
और आदमी कहाँ रहा जो केंचुआ है!”