26
पवित्र तम्बू
यहोवा ने मूसा से कहा, “पवित्त्र तम्बू दस कनातों से बनाओ। इन कनातों को अच्छे रेशम तथा नीले, लाल और बैंगनी कपड़ों से बनाओ। किसी कुशल कारीगर को चाहिए कि वह करूबों को पंख सहित कनातों पर काढ़े। हर एक कनात को एक बराबर बनाओ। हर एक कनात चौदह गज़* चौदह गज शाब्दिक, “अट्ठाइस हाथ।” लम्बी और दो गज दो गज शाब्दिक, “चार हाथ।” चौड़ी होनी चाहिए। सभी कनातों को दो भागों में सीओ। एक भाग में पाँच कनातों को एक साथ सीओ और दूसरे भाग में पाँच को एक साथ। आखिरी कनात के सिरे के नीचे छल्ले बनाओ। इन छल्लों को बनाने के लिए नीला कपड़ा उपयोग में लाओ। कनातों के दोनों भागों में एक और नीचे छल्ले होंगे। पहले भाग की आखिरी कनात में पचास छल्ले होंगे और दूसरे भाग की आखिरी कनात में पचास। तब पचास सोने के कड़े छल्लों को एक साथ मिलाने के लिए बनाओ। यह कनातों को इस प्रकार जोड़ेंगे कि पवित्र तम्बू एक ही हो जाएगा।”
“तब तुम दूसरा तम्बू बनाओगे जो पवित्र तम्बू को ढकेगा। इस तम्बू को बनाने के लिए बकरियों के बाल से बनी ग्यारह कनातों का उपयोग करो। ये सभी कनातें एक बराबर होनी चाहिए। वे पन्द्रह गज पन्द्रह गज शाब्दिक, “तीस हाथ।” लम्बी और दो गज चौड़ी होनी चाहिए। एक भाग में पाँच कनातों को एक साथ सीओ तब बाकी छः कनातों को दूसरे भाग में एक साथ सीओ। छठी कनात का उपयोग तम्बू के सामने के पर्दे के लिए करो। इसे इस प्रकार लपेटो कि यह द्वार की तरह खुले। 10 एक भाग की आखिरी कनात के सिरे पर पचास छल्ले बनाओ, ऐसा ही दूसरे भाग की आखिरी कनात के लिए करो। 11 तब पचास काँसे के कड़े बनाओ। इन काँसे के कड़ों का उपयोग छल्लों को एक साथ जोड़ने के लिए करो। ये कनातों को एक साथ तम्बू के रूप में जोड़ेंगे। 12 ये कनातें पवित्र तम्बू से अधिक लम्बी होंगी। इस प्रकार अन्त के कनात का आधा हिस्सा तम्बू के पीछे किनारों के नीचे लटका रहेगा।” 13 “वहाँ अट्ठारह इंच§ अट्ठारह इंच शाब्दिक, “एक हाथ।” कनात तम्बू के बगलों में निचले किनारों से लटकती रहेगी। यह तम्बू को पूरी तरह ढक लेगी। 14 बाहरी आवरण को ढकने के लिए दो अन्य पर्दे बनाओ। एक लाल रंगे मेढ़े के चमड़े से बनाना चाहिए तथा दूसरा पर्दा सुइसों के चमड़े का बना होना चाहिए।
15 “तम्बू के सहारे के लिए बबूल की लकड़ी के तख़्ते बनाओ। 16 तख्ते पन्द्रह फुट** पन्द्रह फुट शाब्दिक, “दस हाथ।” लम्बे और सत्ताईस इंच चौड़े होने चाहिए। 17 हर तख़्ता एक जैसा होना चाहिए। हर एक तख़्ते के तले में†† तले में धातु के आधार पर बने छेटों में ये खूंदियाँ बैठाई जाएंगी जिससे तख़्ते कनातों के लिए खड़े ढाँचे बन सकें। उन्हें जोड़ने के लिए साथ—साथ दो खूंटियाँ होनी चाहिए। 18 तम्बू के दक्षिणी भाग के लिए बीस तख़्ते बनाओ। 19 ढाँचे के ठीक नीचे चाँदी के दो आधार हर एक तख़्ते के लिए होने चाहिए। इसलिए तुम्हें तख़्तें के लिए चाँदी के चालीस आधार बनाने चाहिए। 20 तम्बू के (उत्तरी भाग) के लिए बीस तख़्ते और बनाओ। 21 इन तख़्तों के लिए भी चाँदी के चालीस आधार बनाओ, अर्थात् एक तख़्ते के लिए दो आधार। 22 तुम्हें तम्बू के (पश्चिमी छोर) के लिए छः और तख्ते बनाने चाहिए। 23 दो तख़्ते पिछले कोनों के लिए बनाओ। 24 कोने के दोनों तख़्ते एक साथ जोड़ देने चाहिए। तले में दोनों तख़्तों की खूँटियाँ चाँदी के एक ही आधार में लगेंगी और ऊपर धातु का एक छल्ला दोनों तख़्तों को एक साथ रखेगा। 25 इस प्रकार सब मिलाकर आठ तख्तें तम्बू के सिरे के लिए होंगे और हर तख़्ते के नीचे दो आधारों के होने से सोलह चाँदी के आधार पश्चिमी छोर के लिए होंगे।”
26 “बबूल की लकड़ी का उपयोग करो और तम्बू के तख़्तों के लिए कुण्डियाँ बनाओ। तम्बू के पहले भाग के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी। 27 और तम्बू के दूसरे भाग के ढाँचे के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी। और तम्बू के (पश्चिमी भाग) के ढाँचे के लिए पाँच कुण्डियाँ होंगी अर्थात् तम्बू के पीछे। 28 पाँचों कुण्डियों के बीच की कुण्डी तख़्तों के मध्य में होनी चाहिए। यह कुण्डी तख़्तों के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुँचनी चाहिए।‡‡ यह … चाहिए या मध्यवर्ती कुण्डी तख्तों से होती हुई एक सिरे से दूसरे सिरे तक होनी चाहिए।
29 “तख़्तों को सोने से मढ़ो और तख़्तों की कुण्डियों को फँसाने के लिए कड़े बनवाओ। ये कड़े भी सोने के ही बनने चाहिए। कुण्डियों को भी सोने से मढ़ो। 30 पवित्र तम्बू को तुम उसी ढंग की बनाओ जैसा मैंने तुम्हें पर्वत पर दिखाया था।
पवित्र तम्बू का भीतरी भाग
31 “सन के अच्छे रेशों का उपयोग करो और तम्बू के भीतरी भाग के लिए एक विशेष पर्दा बनाओ। इस पर्दे को नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़े से बनाओ। करूब के प्रतिरूप कपड़े में काढ़ो। 32 बबूल की लकड़ी के चार खम्भे बनाओ। चारों खम्भों पर सोने की बनी खूँटियाँ लगाओ। खम्भों को सोने से मढ़ दो। खम्भों के नीचे चाँदी के चार आधार रखो। तब सोने की खूँटियों में पर्दा लटकाओ। 33 खूँटियों पर पर्दे को लटकाने के बाद, साक्षीपत्र के सन्दूक को पर्दे के पीछे रखो। यह पर्दा पवित्र स्थान को सर्वाधिक पवित्र स्थान से अलग करेगा। 34 सर्वाधिक पवित्र स्थान में साक्षीपत्र के सन्दूक पर ढक्कन रखो।
35 “पवित्र स्थान में पर्दे के दूसरी ओर विशेष मेज़ को रखो। मेज़ तम्बू के उत्तर में होनी चाहिए। तब दीपाधार को तम्बू के दक्षिण में रखो। दीपाधार मेज़ के ठीक सामने होगा।
पवित्र तम्बू का मुख्य द्वार
36 “तब तम्बू के मुख्य द्वार के लिए एक पर्दा बनाओ। इस पर्दे को बनाने के लिए नीले बैंगनी, लाल कपड़े तथा सन के उत्तम रेशों का उपयोग करो और कपड़े में चित्रों की कढ़ाई करो। 37 द्वार के इस पर्दे के लिए सोने के छल्ले बनावाओ। सोने से मढ़े बबूल की लकड़ी के पाँच खम्भे बनाओ और पाँचों खम्भों के लिए काँसे के पाँच आधार बनाओ।”

*26:2: चौदह गज शाब्दिक, “अट्ठाइस हाथ।”

26:2: दो गज शाब्दिक, “चार हाथ।”

26:8: पन्द्रह गज शाब्दिक, “तीस हाथ।”

§26:13: अट्ठारह इंच शाब्दिक, “एक हाथ।”

**26:16: पन्द्रह फुट शाब्दिक, “दस हाथ।”

††26:17: तले में धातु के आधार पर बने छेटों में ये खूंदियाँ बैठाई जाएंगी जिससे तख़्ते कनातों के लिए खड़े ढाँचे बन सकें।

‡‡26:28: यह … चाहिए या मध्यवर्ती कुण्डी तख्तों से होती हुई एक सिरे से दूसरे सिरे तक होनी चाहिए।