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चरवाहा और उसकी भेड़ें
यीशु ने कहा, “मैं तुमसे सत्य कहता हूँ जो भेड़ों के बाड़े में द्वार से प्रवेश न करके बाड़ा फाँद कर दूसरे प्रकार से घुसता है, वह चोर है, लुटेरा है। किन्तु जो दरवाजे से घुसता है, वही भेड़ों का चरवाहा है। द्वारपाल उसके लिए द्वार खोलता है। और भेड़ें उसकी आवाज सुनती हैं। वह अपनी भेड़ों को नाम ले लेकर पुकारता है और उन्हें बाड़े से बाहर ले जाता है। जब वह अपनी सब भेड़ों को बाहर निकाल लेता है तो उनके आगे-आगे चलता है। और भेड़ें उसके पीछे-पीछे चलती हैं क्योंकि वे उसकी आवाज पहचानती हैं। भेड़ें किसी अनजान का अनुसरण कभी नहीं करतीं। वे तो उससे दूर भागती हैं। क्योंकि वे उस अनजान की आवाज नहीं पहचानतीं।”
यीशु ने उन्हें यह दृष्टान्त दिया पर वे नहीं समझ पाये कि यीशु उन्हें क्या बता रहा है।
अच्छा चरवाहा-यीशु
इस पर यीशु ने उनसे फिर कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ, भेड़ों के लिये द्वार मैं हूँ। वे सब जो मुझसे पहले आये थे, चोर और लुटेरे हैं। किन्तु भेड़ों ने उनकी नहीं सुनी। मैं द्वार हूँ। यदि कोई मुझमें से होकर प्रवेश करता है तो उसकी रक्षा होगी वह भीतर आयेगा और बाहर जा सकेगा और उसे चरागाह मिलेगी। 10 चोर केवल चोरी, हत्या और विनाश के लिये ही आता है। किन्तु मैं इसलिये आया हूँ कि लोग भरपूर जीवन पा सकें।
11 “अच्छा चरवाहा मैं हूँ! अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपनी जान दे देता है। 12 किन्तु किराये का मज़दूर क्योंकि वह चरवाहा नहीं होता, भेड़ें उसकी अपनी नहीं होतीं, जब भेड़िये को आते देखता है, भेडों को छोड़कर भाग जाता है। और भेड़िया उन पर हमला करके उन्हें तितर-बितर कर देता है। 13 किराये का मज़दूर, इसलिये भाग जाता है क्योंकि वह दैनिक मज़दूरी का आदमी है और इसीलिए भेड़ों की परवाह नहीं करता।
14-15 “अच्छा चरवाहा मैं हूँ। अपनी भेड़ों को मैं जानता हूँ और मेरी भेड़ें मुझे वैसे ही जानती हैं जैसे परम पिता मुझे जानता है और मैं परम पिता को जानता हूँ। अपनी भेड़ों के लिए मैं अपना जीवन देता हूँ। 16 मेरी और भेड़ें भी हैं जो इस बाड़े की नहीं हैं। मुझे उन्हें भी लाना होगा। वे भी मेरी आवाज सुनेगीं और इसी बाड़े में आकर एक हो जायेंगी। फिर सबका एक ही चरवाहा होगा। 17 परम पिता मुझसे इसीलिये प्रेम करता है कि मैं अपना जीवन देता हूँ। मैं अपना जीवन देता हूँ ताकि मैं उसे फिर वापस ले सकूँ। इसे मुझसे कोई लेता नहीं है। 18 बल्कि मैं अपने आप अपनी इच्छा से इसे देता हूँ। मुझे इसे देने का अधिकार है। यह आदेश मुझे मेरे परम पिता से मिला है।”
19 इन शब्दों के कारण यहूदी नेताओं में एक और फूट पड़ गयी। 20 बहुत से कहने लगे, “यह पागल हो गया है। इस पर दुष्टात्मा सवार है। तुम इसकी परवाह क्यों करते हो।”
21 दूसरे कहने लगे, “ये शब्द किसी ऐसे व्यक्ति के नहीं हो सकते जिस पर दुष्टात्मा सवार हो। निश्चय ही कोई दुष्टात्मा किसी अंधे को आँखें नहीं दे सकती।”
यहूदी यीशु के विरोध में
22 फिर यरूशलेम में समर्पण का उत्सव* समर्पण का उत्सव हनूक्काह अर्थात् “प्रकाश का उत्सव।” यह दिसम्बर के एक विशेष सप्ताह में मनाया जाता था। यह 165 पूर्व मसीह को याद रखने के लिये मनाया जाता था जब यरूशलेम मन्दिर पवित्र करके यहूदी उपासना के लिये फिर से तैयार किया गया था। 165 पूर्व मसीह के पहले यह मन्दिर यूनानी सेना के अधीन था और विदेशी देवता की उपासना करने के लिये उपयोग करते थे। आया। सर्दी के दिन थे। 23 यीशु मन्दिर में सुलैमान के दालान में टहल रहा था। 24 तभी यहूदी नेताओं ने उसे घेर लिया और बोले, “तू हमें कब तक तंग करता रहेगा? यदि तू मसीह है, तो साफ-साफ बता।”
25 यीशु ने उत्तर दिया, “मैं तुम्हें बता चुका हूँ और तुम विश्वास नहीं करते। वे काम जिन्हें मैं परम पिता के नाम पर कर रहा हूँ, स्वयं मेरी साक्षी हैं। 26 किन्तु तुम लोग विश्वास नहीं करते। क्योंकि तुम मेरी भेड़ों में से नहीं हो। 27 मेरी भेड़ें मेरी आवाज को जानती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ। वे मेरे पीछे चलती हैं और 28 मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ। उनका कभी नाश नहीं होगा। और न कोई उन्हें मुझसे छीन पायेगा। 29 मुझे उन्हें सौंपने वाला मेरा परम पिता सबसे महान है। मेरे पिता से उन्हें कोई नहीं छीन सकता। मेरा … महान है कुछ यूनानी प्रतियों में यह लिखा हुआ है “वे सबसे महान हैं।” 30 मेरा पिता और मैं एक हैं।”
31 फिर यहूदी नेताओं ने यीशु पर मारने के लिये पत्थर उठा लिये। 32 यीशु ने उनसे कहा, “पिता की ओर से मैंने तुम्हें अनेक अच्छे कार्य दिखाये हैं। उनमें से किस काम के लिए तुम मुझ पर पथराव करना चाहते हो?”
33 यहूदी नेताओं ने उसे उत्तर दिया, “हम तुझ पर किसी अच्छे काम के लिए पथराव नहीं कर रहे हैं बल्कि इसलिए कर रहें है कि तूने परमेश्वर का अपमान किया है और तू, जो केवल एक मनुष्य है, अपने को परमेश्वर घोषित कर रहा है।”
34 यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “क्या यह तुम्हारे विधान में नहीं लिखा है, ‘मैंने कहा तुम सभी ईश्वर हो?’ उद्धरण भजन 82:6 35 क्या यहाँ ईश्वर उन्हीं लोगों के लिये नहीं कहा गया जिन्हें परम पिता का संदेश मिल चुका है? और धर्मशास्त्र का खंडन नहीं किया जा सकता। 36 क्या तुम ‘तू परमेश्वर का अपमान कर रहा है’ यह उसके लिये कह रहे हो, जिसे परम पिता ने समर्पित कर इस जगत को भेजा है, केवल इसलिये कि मैंने कहा, ‘मैं परमेश्वर का पुत्र हूँ’? 37 यदि मैं अपने परम पिता के ही कार्य नहीं कर रहा हूँ तो मेरा विश्वास मत करो 38 किन्तु यदि मैं अपने परम पिता के ही कार्य कर रहा हूँ, तो, यदि तुम मुझ में विश्वास नहीं करते तो उन कार्यों में ही विश्वास करो जिससे तुम यह अनुभव कर सको और जान सको कि परम पिता मुझ में है और मैं परम पिता में।”
39 इस पर यहूदियों ने उसे बंदी बनाने का प्रयत्न एक बार फिर किया। पर यीशु उनके हाथों से बच निकला।
40 यीशु फिर यर्दन नदी के पार उस स्थान पर चला गया जहाँ पहले यूहन्ना बपतिस्मा दिया करता था। यीशु वहाँ ठहरा, 41 बहुत से लोग उसके पास आये और कहने लगे, “यूहन्ना ने कोई आश्चर्यकर्म नहीं किये पर इस व्यक्ति के बारे में यूहन्ना ने जो कुछ कहा था सब सच निकला।” 42 फिर वहाँ बहुत से लोग यीशु में विश्वासी हो गये।

*10:22: समर्पण का उत्सव हनूक्काह अर्थात् “प्रकाश का उत्सव।” यह दिसम्बर के एक विशेष सप्ताह में मनाया जाता था। यह 165 पूर्व मसीह को याद रखने के लिये मनाया जाता था जब यरूशलेम मन्दिर पवित्र करके यहूदी उपासना के लिये फिर से तैयार किया गया था। 165 पूर्व मसीह के पहले यह मन्दिर यूनानी सेना के अधीन था और विदेशी देवता की उपासना करने के लिये उपयोग करते थे।

10:29: मेरा … महान है कुछ यूनानी प्रतियों में यह लिखा हुआ है “वे सबसे महान हैं।”

10:34: उद्धरण भजन 82:6