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उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की स्तुति
 
१ यहोवा की स्तुति करो।
हे मेरे मन यहोवा की स्तुति कर!
२ मैं जीवन भर यहोवा की स्तुति करता रहूँगा;
जब तक मैं बना रहूँगा, तब तक मैं अपने परमेश्‍वर का भजन गाता रहूँगा।
३ तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना,
न किसी आदमी पर, क्योंकि उसमें उद्धार करने की शक्ति नहीं।
४ उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा;
उसी दिन उसकी सब कल्पनाएँ नाश हो जाएँगी*।
५ क्या ही धन्य वह है,
जिसका सहायक याकूब का परमेश्‍वर है,
और जिसकी आशा अपने परमेश्‍वर यहोवा पर है।
६ वह आकाश और पृथ्वी और समुद्र
और उनमें जो कुछ है, सब का कर्ता है;
और वह अपना वचन सदा के लिये पूरा करता रहेगा। (प्रेरि. 4:24, प्रेरि. 14:15, प्रेरि. 17:24, प्रका. 10:6, प्रका. 14:7)
७ वह पिसे हुओं का न्याय चुकाता है;
और भूखों को रोटी देता है।
यहोवा बन्दियों को छुड़ाता है;
८ यहोवा अंधों को आँखें देता है।
यहोवा झुके हुओं को सीधा खड़ा करता है;
यहोवा धर्मियों से प्रेम रखता है।
९ यहोवा परदेशियों की रक्षा करता है;
और अनाथों और विधवा को तो सम्भालता है*;
परन्तु दुष्टों के मार्ग को टेढ़ा-मेढ़ा करता है।
१० हे सिय्योन, यहोवा सदा के लिये,
तेरा परमेश्‍वर पीढ़ी-पीढ़ी राज्य करता रहेगा।
यहोवा की स्तुति करो!